जप की गणना
जप की गणना के तीन प्रकार बतलाए गए हैं - वर्णमाला जप , अक्षमाला जप एवं कर माला जप।
वर्णमाला जपः -- वर्णमाला के अक्षरों के आधार पर जप - संख्या की गणना की जाए , उसे ' वर्णमाला जप ' कहते हैं।
अक्षमाला जपः -- मनकों की माला पर जो जप किया जाता है , उसे ' अक्षमाला जप ' कहते हैं। अक्षमाला में एक सौ आठ मनकों की माला को प्रधानता प्राप्त है और उसके पीछे भी व्यवस्थित वैज्ञानिक रहस्य है।
जीवन जगत् और सृष्टि का प्राणाधार सूर्य है , जो कि एक मास में एक व्रुत्त पूरा कर लेता है । खगोलीय वृत्त ३६० अंशों का निर्मित है और यदि इसकी कलाएं बनाई जाएं तो ३६० + ६० = २१६०० सिद्ध होती हैं।
चूंकि सूर्य छह मास तक उत्तरायन तथा शेष छह मास दक्षिणायन में रहता है , अतः एक वर्ष में दो अयन होने से यदि इन कलाओं के दो भाग करें तो एक भाग १०८०० का सिद्ध होता है।
सामंजस्य हेतु अंतिम बिंदुओं से संख्या को मुक्त कर दें तो शुद्ध संख्या १०८ बच रहती हैं ,इसलिए भारतीय धर्मग्रंथों में उत्तरायन सूर्य के समय सीधे तरीके से तथा दक्षिणायन सूर्य के समय दाएं-बाएं तरीके से एक सौ आठ मनको की माला फेरने का विधान है ,
जिसे कार्यसिद्धि में सफलता मिलती है।
भारतीय कालगति में एक दिन रात का परिणाम ६० घड़ी माना गया है , जिसके ६० * ६० = ३६०० पल तथा ३६०० * ६० = २१६०० विपल सिद्ध होते हैं। इस प्रकार इसके दो भाग करने से १०८०० विपल दिन के और इतने ही रात्रि के सिद्ध होते हैं और शुभकार्य में अहोरात्र का पूर्व भाग ( दिन को ) ही उत्तम माना गया है , जिसके विपल १०८०० हैं , अतः उस शुभ कर्म में १०८ मनकों की माला को प्रधानता देना तर्क संगत और वैज्ञानिक दृष्टि से उचित है।
किसी भी मंत्र भी हजार अथवा लाख संख्या की गणना माला द्वारा ही संभव है। इसके लिए १०८ मनकों की माला सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
करमाला जपः - हाथ की उंगलियों के पोरवों ( पर्वो ) पर जो जप किया जाता है , ' करमाला जप ' कहते हैं। नित्य सामान्यतः बिना माला के भी जप किया जा सकता है , किन्तु विशिष्ट कार्य या अनुष्ठान - प्रयोग से माला प्रयोग में लाई जाती है।
2.सामान्य ज्ञान
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