महासिद्धियाँ, Mha Sidhiya,
महासिद्धियाँ,
ये मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं । इनमें से एक भी महा सिद्धि के प्राप्त हो जाने के बाद व्यक्ति के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। ये आठों सिद्धियाँ यदि किसी को प्राप्त हो जाएं तो समझिये की वो साक्षात् ईश्वर है।
इनके प्रकार :-
अणिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति समस्त अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से सम्पन्न हो जाता है । एक भौतिक वैज्ञानिक अच्छे से जानता है की एक- एक परमाणु अपने में कितनी ऊर्जा को समाहित किये हुए है । एक ग्राम यूरेनियम के संवर्धन से इतनी ऊर्जा निकलती है की पलक झपकने की देरी में 13 बार पृथ्वी को नष्ट किया जा सकता है तो इस अणिमा की सिद्धि से सम्पन्न योगी को कितनी शक्ति प्राप्त होती होगी ।
महिमा : इस सिद्धि से सम्पन्न हुआ महायोगी ईश्वर की तरह प्रकृति को बढ़ाने में सक्षम होता है । क्योंकि साक्षात् श्री हरि अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं । ऋषि विश्वामित्र को ये सिद्धि प्राप्त हुई थी ।
लघिमा : इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है । भगवान विष्णु जी अपनी इसी कला से इस अनन्त ब्रह्मांडों के समूह के कण- कण के ऊपर नियंत्रण रखते है ।
प्राप्ति : इस सिद्धि के बल पर जो कुछ भी पाना चाहें उसको पाया जा सकता है ।
प्राकाम्य : इस सिद्धि के सिद्ध हो जाने पर आपके मन के विचार घनीभूत होकर ठोस पदार्थों में तब्दील होने लगते हैं अर्थात आपकी सोच जीवन्त संसार बनने लगती है । उन परमेश्वर ने अपनी इसी कला से इस ब्रह्माण्ड का निर्माण किया । उन्होंनेंउड़ने की इच्छा की तो पक्षियों की सृष्टि हुई, उन्होनें चमकना चाह तो हीरे बन गए, उन्होनें देखना चाहा तो सूर्य और टिमटिमाना चाहा तो तारे बन गए ।
ईशिता : इस संसार को नचाने वाली ब्रह्मा जैसे सृष्टिकर्ता को मोहित करने वाली माया इस सिद्धि से सुसम्पन्न महायोगियों के नियंत्रण में हो जाती है अर्थात वो ईश जैसा ही बन जाता है
वशिता : जिस सिद्धि को साधने पर संसार के जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, देव- दानव सब वश में हो जाते हैं उसे वशिता कहते हैं ।
ख्याति : जिस सिद्धि को प्राप्त करने पर योगी अष्ट लक्ष्मी का स्वामी बन जाता है, समस्त भौतिक और परमार्थिक सुख संपदाएं प्राप्य बन जाती हैं । भगवान नारायण को इसी कला के प्रभाव से समुद्र की पुत्री महा लक्ष्मी ने वारन किया ।
इसके अलावा दस सिद्धियां और भी हैं जिनके बल पर कोई सिद्ध कहलाता है इसंक्षेप में इनके बारे में
सुनिए :
अनूर्मि सिद्धि(भूख, प्यास, शोक, मोह, जरा, मृत्यु पर नियंत्रण)
दूरश्रवण सिद्धि (दूरस्थ बातों का ज्ञान)
दूरदर्शन सिद्धि (संसार के किसी भी पदार्थ को देख पाने की शक्ति)
मनोजव सिद्धि (मन के वेग से कहीं भी स्थानांतरित होने की शक्ति)
कामरूप सिद्धि (अपने शरीर को किसी भी रूप में बदलने की शक्ति)
परकाया प्रवेश सिद्धि (अपनी आत्मा को किसी भी जीव- जन्तु में प्रवेश करा देने की शक्ति)
स्वछंदमरण सिद्धि (अपनी इच्छा से मृत्यु की शक्ति)
देवक्रीडानुदर्शन सिद्धि (स्वर्ग तक में हो रही गतिविधियों को देखने की शक्ति)
यथासंकल्प सिद्धि (संकल्पों, विचारों को पूर्ण करने की शक्ति)
अप्रतिहतगति सिद्धि (अबाधित गति की शक्ति)
इसके अलावा काफी सारी क्षुद्र सिद्धियां होती हैं जो जल्दी ही प्राप्त हो जाती हैं इनसे साधक चमत्कारिक बन जाता है किन्तु इनमें न रूककर बड़ी सिद्धियों की तरफ जुटना चाहिए
महासिद्धियाँ, Mha Sidhiya
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